सायनस में लापरवाही भारी पड़ सकती है

सायनस में लापरवाही भारी पड़ सकती है

सेहतराग टीम

सायनस एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग आमतौर पर ज्‍यादा फ‍िक्र नहीं करते। इस बीमारी को जानलेवा तो हर्गिज नहीं माना जाता। ये सच है कि इस बीमारी में जान का जोखिम न के बराबर होता है मगर विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी को हलके में लेना भारी पड़ सकता है।

क्‍या है सायनस

दिल्‍ली के जाने माने ईएनटी यानी कान, नाक और गला रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर देवेंद्र राय के अनुसार सिर हमेशा भारी-भारी, सिर में दर्द, लगातार जुकाम, नाक बंद हो जाना सायनस की बीमारी के लक्षण हैं। सायनस परेशान करने वाली बीमारी है लेकिन इसको लेकर किसी मरीज को कोई भय नहीं होता है बल्कि सिर में हमेशा भारीपन एवं दर्द के कारण दूसरे घातक रोगों का भय होता है पर जैसे ही पता चलता है कि यह सायनस के कारण है, मरीज राहत की सांस लेता है।

कितनी खतरनाक है बीमारी

डॉक्‍टर राय कहते हैं कि सायनस को लेकर यह नजरिया खतरनाक हो सकता है। अगर सायनस किसी संक्रमण के कारण हुआ हो तो इलाज में देरी या सही इलाज के अभाव में इसके मस्तिष्क एवं आंखों तक पहुंचने का खतरा रहता है। खोपड़ी की खाली जगहों यानी सायनस में हुए संक्रमण के मस्तिष्क में प्रवेश करने से जान भी जा सकती है। सायनस के संक्रमण के इस फैलाव से कई लोगों की आंखों की रोशनी जाने के उदाहरण भी मौजूद हैं।

एलोपैथी इलाज सुरक्षित है

सायनस का ऐलोपैथी से इलाज ज्यादा सुरक्षित है क्योंकि इसमें दवा जांच के बाद ही दी जाती है। वैसे, किसी भी पद्धति में यह पता करना महत्वपूर्ण है कि सायनस एलर्जी के कारण हुआ या संक्रमण के कारण। लेकिन आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक डॉक्टर इसकी जांच किए बगैर दवा देने लगते हैं ओर यहीं गलती हो जाती है। यूं, जहां तक होम्योपैथिक दवा का सवाल है तो वे प्रभावी होती है और जो सायनस ऐलोपैथी दवाओं से ठीक हो जाते हैं वे होम्योपैथिक दवा से भी ठीक हो सकते हैं। एलर्जी से बीमारी होने पर एंटी एलर्जिक दवा और संक्रमण से होने पर एंटी बायोटिक दी जाती है।

डॉक्‍टर राय कहते हैं कि जहां तक योग का सवाल है तो सायनस के इलाज में हम लोग भी मरीजों को जलनेति एवं अनुलोम-विलोम जैसे सांस संबंधी व्यायाम की सलाह देते हैं लेकिन सूत्रनेति के हम बिल्कुल खिलाफ हैं। नाक में सूत डालकर सफाई करने से नाक में धाव हो सकता है, रक्तस्राव होने लगता है। यह संक्रमण का कारण भी बनता है। दरअसल, खोपड़ी के खोखले क्षेत्रों यानी सायनस में सूजन के लंबे समय तक रहने के कारण वहां अंगूर जैसे गुच्छ पॉलिप बन जाते हैं। अब एंडोस्कोपी से इसे निकालना बेहद आसान है लेकिन पुराने जमाने में ऐसा कोई तरीका नहीं था। उसे निकालने के लिए सूत्रनेति कराई जाती थी। लेकिन इससे कोई फायदा नहीं है।

क्‍या सलाह देते हैं आयुर्वेदिक चिकित्‍सक

दिल्‍ली के वरिष्‍ठ आयुर्वेदिक चिकित्‍सक अच्‍युत कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि आयुर्वेद में सायनस को प्रतिश्याय के नाम से जाना जाता है। यह बीमारी कई कारणों से हो सकती है जिसमें एलर्जी प्रमुख है। इसके अलावा धुआं, धूल, कमरे का हवादार न होना, रात में बंद कमरे में सोना, तली चीजें खाना, ठंडे से गर्म या गर्म से ठंडे में आना-जाना आदि कारणों से नजला या जुकाम होता है और यह नजला या जुकाम लगातार कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर होने लगे तो इसे गंभीर सायनस कहते हैं। आयुर्वेद के इलाज में यह देखा जाता है कि किस वजह से मरीज को सायनस हुआ है। एलर्जी के रोगी का इलाज उसके पेट की सफाई से शुरू किया जाता है। सायनस में आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा दी जाने वाली दवाओं में चित्रक हरीतकी, कंटकारी अवलेह, नारदीय लक्ष्मी विलास रस, गोदंती, शीतोपलादी चूर्ण आदि दिया जाता है। एलर्जी होने पर दरिद्रा खंड, शिरीष आसव आदि दिया जाता है। इसके अलावा एक चम्मच हल्दी एक चम्मच घी के साथ भूनकर और एक कप दूध और थोड़ी चीनी मिलाकर सेवन करना चाहिए। नाक में लगाने के लिए तिल का तेल या षट्बिंदु तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। ठंड के दिनों में च्यवनप्राश का इस्तेमाल भी फायदा देता है। सावधानी के रूप में सिर को ढंक कर रखें।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।